इस कविता में मैंने जीवन के एक अभिंग अंग आंसुओं से अवगत कराने का प्रयास किया है। कविता के द्वारा मैंने बताने का प्रयास किया है कि ये आँसूं किन किन परिस्थितियों में प्रकट हो जाते हैं, और उस परिस्थिति विशेष में उन्हें किन सुन्दर शब्दों से संबोधित किया जाता है।
आँसू
पहल हुई थी इनकी,
जब धरती माँ ने गोद लिया।
जाने कहाँ से इन आँखों ने,
इस 'मौत्तिक जल' को खोद लिया।।
जब धरती माँ ने गोद लिया।
जाने कहाँ से इन आँखों ने,
इस 'मौत्तिक जल' को खोद लिया।।
फिर आविर्भूत हुए,
हमारे 'दुःख के हमसफ़र'।
चुभते थे जब काँटे,
चलते हुए बचपन की डगर।।
हमारे 'दुःख के हमसफ़र'।
चुभते थे जब काँटे,
चलते हुए बचपन की डगर।।
अपनों ने जब मारे खंजर,
जीवन धरा कर दी थी बंजर।
तब 'खारे पानी की धारा',
ने सींचा वो धरा दुबारा।।
जीवन धरा कर दी थी बंजर।
तब 'खारे पानी की धारा',
ने सींचा वो धरा दुबारा।।
जब इस निर्मम मन ने पाया,
अपने प्रभु की निर्मल छाया।
कर पुनीत वातावरण सारा,
तब भी झरती यह 'अमृत धारा'।।
अपने प्रभु की निर्मल छाया।
कर पुनीत वातावरण सारा,
तब भी झरती यह 'अमृत धारा'।।
हो सुख अपार ,
या उपहारों की भरमार।
छूटता कोई अपना,
या टूटता कोई सपना।
या देख किसी भी जीव की पीर,
सबमें चक्षों से बहते ये 'निष्छल नीर'।।
या उपहारों की भरमार।
छूटता कोई अपना,
या टूटता कोई सपना।
या देख किसी भी जीव की पीर,
सबमें चक्षों से बहते ये 'निष्छल नीर'।।
मनुष्य ज्यों सोचे, की होंगे अंत,
'क्षण भर के संताप संकेतक'।
त्यों ही ये हो जाएं अनंत।।
'क्षण भर के संताप संकेतक'।
त्यों ही ये हो जाएं अनंत।।
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