*कुछ मित्रों ने अभी से नव वर्ष की अग्रिम शुभकामना की प्रक्रिया प्रारम्भ कर दी है!!* इस परिप्रेक्ष्य मे मैं आप सब के समक्ष राष्ट्रकवि श्रद्धेय रामधारी सिंह " दिनकर " जी की कविता प्रस्तुत कर रहा हूँ। ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं!! है अपनी ये तो रीत नहीं है अपना ये व्यवहार नहीं!! धरा ठिठुरती है सर्दी से आकाश में कोहरा गहरा है!! बाग़ बाज़ारों की सरहद पर सर्द हवा का पहरा है!! सूना है प्रकृति का आँगन कुछ रंग नहीं , उमंग नहीं!! हर कोई है घर में दुबका हुआ नव वर्ष का ये कोई ढंग नहीं!! चंद मास अभी इंतज़ार करो!! निज मन में तनिक विचार करो!! नये साल "नया" कुछ हो तो सही!! क्यों नक़ल में सारी अक्ल बही!! उल्लास मंद है जन -मन का आयी है अभी बहार नहीं!! ये नव वर्ष हमे स्वीकार नहीं है अपना ये त्यौहार नहीं!! ये धुंध कुहासा छंटने दो!! रातों का राज्य सिमटने दो!! प्रकृति का रूप निखरने दो!! फागुन का रंग बिखरने दो!! प्रकृति दुल्हन का रूप धार जब स्नेह – सुधा बरसायेगी!! शस्य – श्यामला धरती माता घर -घर खुशहाली लायेगी!! *तब "चैत्र शुक्ल&
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